जब वैज्ञानिको को करना पड़ा सबसे पहले इस समस्या का सामना
अंतरिक्ष यात्रा सुनने में जितनी अच्छी लगती है असल में उतनी ही मुश्किल भी है। अंतरक्षि यात्रियों को जीरो ग्रैविटी से तालमेल बैठाने में काफी मुश्किलें आती हैं और उससे भी ज्यादा मुश्किल तब होती है जब उन्हें मल-मूत्र का त्याग करना हो।
19 जनवरी 1961 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री एलन शेफर्ड अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी बने। उन्हें केवल 15 मिनट के लिए अंतरिक्ष में रहना था, इसलिए उनके टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी लेकिन लॉन्च में देरी हुई और शेफर्ड को अंतरिक्ष सूट में ही पेशाब करना पड़ा।
कुछ सालों बाद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कंडोम की तरह दिखने वाला पाउच बनाया गया लेकिन यह बार-बार फट जाता था। वहीं शौच के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को पीछे की तरफ एक बैग चिपकाकर रखना पड़ता था। इससे अंतरिक्ष यात्रियों का काम तो किसी तरह चल जाता था, लेकिन वे मल-मूत्र की गंध से बहुत परेशान रहते थे।
अपोलो मून मिशन के दौरान पेशाब के लिए बनाए गए पाउच को एक वॉल्व से जोड़ दिया गया। वॉल्व को दबाते ही यूरिन स्पेस में चला जाता था, लेकिन यहां समस्या ये थी कि अगर वॉल्व दबाने में एक सेकेंड की देरी भी हुई तो यूरिन अंतरिक्ष यान में ही तैरने लगता। इसे पहले खोल देने से अंतरिक्ष के वैक्यूम से शरीर के अंग बाहर खींचे जा सकते थे। इसलिए अंतिरक्ष यात्रियों को एस्ट्रोनॉट्स पाउच में ही यूरिन डिस्पोज करना पड़ा।
Post Comment
No comments