शायद ही आपको पता हो की शिवरात्रि क्यों मनायी जाती है, जाने इसके पीछे का कारण
दोस्तों को कथाओं की माने तो एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्रदेव के पास गए लेकिन इंद्रदेव अपने राजा होने पर घमंड करके ऋषि दुर्वासा को अपमानित करने लगे या देखकर ऋषि दुर्वासा इंद्रदेव पर अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप दे दिया | उन्होंने कहा कि जिस धन के ऊपर तू घमंड कर रहा है | यह धन तुझ से छीन लिया जाएगा अर्थात पूरा संसार श्री हिन हो जाएगा |

उसके बाद पूरा संसार श्री हीन हो गया फिर इंद्रदेव को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने ऋषि दुर्वासा से माफी मांगी और इस श्राप का उपाय मांगा फिर ऋषि दुर्वासा ने कहा कि इस श्राप का उपाय भगवान विष्णु के पास है | इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु को उन्होंने सब कुछ बताया | तब भगवान विष्णु ने कहा कि इसका उपाय सिर्फ समुंद्र मंथन है लेकिन सभी देवता इतने कमजोर हो गए थे | कि वह अकेले समुद्र मंथन नहीं कर सकते थे इसलिए उन्हें असुरों का सहारा लेना पड़ा |

भगवान विष्णु के आदेशानुसार देवताओं ने असुरों की राजा , राजा बलि से मदद मांगी क्योंकि राजा बलि विष्णु भगवान के बहुत बड़े भक्त थे | इसलिए उन्होंने मदद की | देवताओं और असुरों में यह साझा हुआ कि मंथन में जो भी अनमोल रत्न निकलेगा वह सभी में सामान भागों में बांटा जाएगा |लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह थी कि समुद्र मंथन कैसे होगा ? इसका उपाय महादेव के पास था उन्होंने बताया कि मंदराचल नाम का एक पर्वत है जो समुद्र के दबाव को सर सकता है |
इस पर्वत के चारों ओर बासुकीनाग को लपेटा गया | नाग के सिर का हिस्सा असुरों के तरफ और पूछ का हिस्सा देवताओं की तरफ था | मंदराचल पर्वत समुद्र में भगवान कश्यप पर टिका हुआ था | भगवान कश्यप विष्णु जी का अवतार थे | फिर समुंद्र मंथन शुरू हुआ इसमें जो भी रत्न निकले वे सभी में समान भागों में बांटा गया फिर हलाहल समुंद्र से निकला यह हलाहल इतना ज्यादा खतरनाक था कि इसके निकलने से ही पूरा संसार तबाह होने लगा इसे देवता या असुर कोई भी नहीं पी सकता था इसलिए सब लोग महादेव के शरण में गए भगवान भोलेनाथ ने इस बीच का पान किया यह हलाहल इतना खतरनाक था | कि यह महादेव को मूर्छित करने लगा | याह देखकर माता पार्वती ने इस हलाल को महादेव के गले में ही रोक दिया | इस वजह से महादेव को नीलकंठ के भी नाम से जाना जाने लगा | इस दिन की रात्रि को शिवरात्रि के नाम से जाना जाने लगा |
उसके बाद पूरा संसार श्री हीन हो गया फिर इंद्रदेव को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने ऋषि दुर्वासा से माफी मांगी और इस श्राप का उपाय मांगा फिर ऋषि दुर्वासा ने कहा कि इस श्राप का उपाय भगवान विष्णु के पास है | इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु को उन्होंने सब कुछ बताया | तब भगवान विष्णु ने कहा कि इसका उपाय सिर्फ समुंद्र मंथन है लेकिन सभी देवता इतने कमजोर हो गए थे | कि वह अकेले समुद्र मंथन नहीं कर सकते थे इसलिए उन्हें असुरों का सहारा लेना पड़ा |

भगवान विष्णु के आदेशानुसार देवताओं ने असुरों की राजा , राजा बलि से मदद मांगी क्योंकि राजा बलि विष्णु भगवान के बहुत बड़े भक्त थे | इसलिए उन्होंने मदद की | देवताओं और असुरों में यह साझा हुआ कि मंथन में जो भी अनमोल रत्न निकलेगा वह सभी में सामान भागों में बांटा जाएगा |लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या यह थी कि समुद्र मंथन कैसे होगा ? इसका उपाय महादेव के पास था उन्होंने बताया कि मंदराचल नाम का एक पर्वत है जो समुद्र के दबाव को सर सकता है |
इस पर्वत के चारों ओर बासुकीनाग को लपेटा गया | नाग के सिर का हिस्सा असुरों के तरफ और पूछ का हिस्सा देवताओं की तरफ था | मंदराचल पर्वत समुद्र में भगवान कश्यप पर टिका हुआ था | भगवान कश्यप विष्णु जी का अवतार थे | फिर समुंद्र मंथन शुरू हुआ इसमें जो भी रत्न निकले वे सभी में समान भागों में बांटा गया फिर हलाहल समुंद्र से निकला यह हलाहल इतना ज्यादा खतरनाक था कि इसके निकलने से ही पूरा संसार तबाह होने लगा इसे देवता या असुर कोई भी नहीं पी सकता था इसलिए सब लोग महादेव के शरण में गए भगवान भोलेनाथ ने इस बीच का पान किया यह हलाहल इतना खतरनाक था | कि यह महादेव को मूर्छित करने लगा | याह देखकर माता पार्वती ने इस हलाल को महादेव के गले में ही रोक दिया | इस वजह से महादेव को नीलकंठ के भी नाम से जाना जाने लगा | इस दिन की रात्रि को शिवरात्रि के नाम से जाना जाने लगा |
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