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अगर महाभारत के युध्द में नही होता इस शूरवीर का बहिष्कार तो परिणाम कुछ और ही होता


दुनिया के सबसे बड़े मान ओर अपमान के लिए हुए युद्ध महाभारत में  युद्ध से पहले कुछ ऐसी कई अनोखी घटनाएं हुई थीं, जिनका परिणाम युद्ध के दौरान सामने आया था ।ठीक ऐसी ही एक घटना कुंती पुत्र कर्ण से भी संबंधित है ।देवी कुंती के पहले पुत्र का नाम कर्ण था किन्तु उसके जन्म लेते ही कुंती ने उसका त्याग कर दिया था ।






अपनी इस भूल के कारण माता कुंती ने अपने पुत्र कर्ण का त्याग कर दिया था।








देवी कुंती श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थीं । उनका वास्तविक नाम "शुरासेना" था, जो कि उनके पिता के द्वारा दिया गया था । कुंती के पिता पृथा और महाराज कुन्तिभोज घनिष्ट मित्र थे । कुन्तिभोज की कोई संतान नहीं थी, इसी कारण पृथा की पुत्री शुरासेना को कुन्तिभोज ने गोद ले लिया था । इसके पश्चात उनका नाम कुंती पड़ा ।





एक बार कुन्तिभोज के निवास पर ऋषि दुर्वासा पधारे ।उनके स्वागत सत्कार की ज़िम्मेदारी कुंती को दी गयी । कुंती के अतिथि सम्मान और निष्ठा से प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कुंती को वरदान दिया कि वे एक बार किसी भी देवता का आवाहन कर उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकेंगी । कुंती ने उत्सुकता के कारण सूर्यदेव का आवाहन किया और उनसे एक तेजस्वी पुत्र का वरदान मांगा । इसके बाद सूर्यदेव के आशीर्वाद से पुत्र का जन्म हुआ ।




उस समय देवी कुंती की उम्र कम थी और वे कुंवारी थीं । उन्होंने सोंचा कि यदि किसी ने उनसे इस पुत्र के बारे में पूछा तो वे समाज को क्या उत्तर देंगी । लोकलाज के कारण उन्होंने अपने पुत्र कर्ण को नदी में प्रवाहित कर दिया । जिसके बाद कर्ण का पालन पोषण एक सारथि के द्वारा किया गया ।

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