संसार के इस सबसे बड़े दुराचारी ने अपने पहले ही प्रयास में कर लिया भगवान शिव को प्रसन्न और मांगा अनोखा वरदान
लंकापति के जैसा प्रकांड विद्वान और शिव भक्त होना नामुमकिन है। एक पौराणिक के अनुसार एक बार रावण ने भगवान शिव की घोर तपस्या शुरू कर दी। रावण की तपस्या से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। अतः उन्होंने माता पार्वती के साथ रावण के समक्ष प्रकट हुए। और रावण से वरदान मांगने को कहा। तब रावण ने शिव जी से कई प्रकार की बहुमूल्य वस्तुए मांगी। किन्तु रावण यही नही रुका उसने शिव जी से पार्वती माता को ही मांग लिया।
रावण की इस बात को सुनकर भोलेनाथ अवाक रह गए। किन्तु भोलेनाथ वरदान दे चुके थे अतः वे माना न कर सके। इसके बाद रावण पार्वती माता को लेकर कैलाश ने लंका जाने के लिए चल पड़ा। कुछ ही देर में कैलाश में नारद मुनि पहुँचे। शिव जी को देखते ही नारद जी पूरी कथा समझ गए। नारद जी बिना समय नष्ट करें रावण के पास पहुँचे। और कहने लगे की अरे रावण तुम अपने साथ पार्वती माता की छाया को लेकर कहाँ जा रहे है। ये तो सिर्फ छाया मात्र है असल पार्वती जी को भोलेनाथ ने पाताल लोक में छुपा रखी है।
रावण का सबसे बड़ा अवगुण किसी भी स्त्री को देखकर आकर्षित होना था। वो हर सुन्दर स्त्री को प्राप्त करना चाहता था। नारद मुनि की बातों में आकर रावण पार्वती माता को छोड़कर पाताल लोक पहुँच गया। वहां उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी। रावण ने उससे उसका परिचय पूछा। स्त्री ने बताया की उसका नाम मन्दोदरी है वो यम की पुत्री है। रावण मंदोदरी के रूप पर मोहित हो चुका था। वह मंदोदरी को लेकर लंका ले आया और उसके साथ विवाह कर लिया।
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