जानिए कुछ उपाय तिलकुंट संकटा चौथ माघ पूर्णिमा का व्रत गणपति बप्पा करेंगे हर मनोकामना पूरी
माघ माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को पड़ने वाले सकट चौथ का अपना अलग ही धार्मिक महत्व है. इस बार 13 जनवरी सोमवार के दिन सकट चौथ का व्रत पड़ रहा है. इस व्रत को कई नामों से जाना जाता है, इसे तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी कहा जाता है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान की सलामती और लंबी उम्र के लिए गणेश भगवान की पूजा अर्चना करती हैं और पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए निर्जला व्रत करती हैं।
सकट चौथ को चंद्रमा उदय होने का समय- रात 9 बजे
चतुर्थी तिथि की शुरुआत 13 जनवरी को शाम 5 बजकर 32 मिनट से चतुर्थी तिथि का समापन- 14 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर।
संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश की पूजा के लिए मान्यता है कि ऋषि भारद्वाज और माता पार्वती का पुत्र अंगारक एक महान ऋषि और भगवान गणेश के भक्त थे। उन्होनें भगवान गणेश की पूजा करके उनसे आशीर्वाद मांगा. माघ कृष्ण चतुर्थी के दिन भगवान गणेश ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा. उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि वो चाहते हैं कि उनका नाम हमेशा के लिए भगवान गणेश से जुड़ जाए।
संतान की लंबी आयु की कामना से रखे जाने वाले इस व्रत को इस बार रखने से परिवार के कल्याण की हर कामना पूरी होती है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान व परिवार की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. शाम के समय गणेश पूजन किया जाता है. फिर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा होता है।
व्रत कथा -सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहा करता था. एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका नहीं. बर्तन कच्चे रह गए. बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया ,लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी. बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणेश जी से प्रार्थना की।
सवेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था., डरकर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया. राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणोश पूजा के विषय में बताया. तब राजा ने सकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया. तबसे कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।
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