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इस मंदिर में मूर्तियों की नही बल्कि होती है ज्वाला की पूजा ,जानें क्या है राज

 भारत मे कई अद्धभुत मंदिर हैं। उन अद्धभुत मंदिरों मे से एक ज्वाला जी मंदिर भी है। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले मे स्थापित है। इस मंदिर मे मूर्ति की नहीं बल्कि धरती के गर्भ से निकली नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। ज्वाला जी का मंदिर बहुत पुराना है। इस मंदिर का उल्लेख महाभारत मे भी है। लोगों का मानना है की यह नौ ज्वाला माता के 9 रूपों को बताती हैं। यह मंदिर माता के 51 शक्ति पीठों मे से एक हैं। कहा जाता है यहाँ पर माता सति की जीभ गिरी थी। एक बार माता का एक भक्त जिसका नाम धयानु भक्त था वो माता का दर्शन करने 1000 भक्तो के साथ जा रहा था। तब उसे बादशाह अकबर के सैनिकों ने पकड़ लिया। बाद मैं उसे अकबर के पास ले गए। उसने अकबर को माता की शक्ति के बारे ने बताया तो अकबर ने उसे अंधबिश्वास समझा।

उसने उस भक्त के घोड़े का सर धड़से अलग कर दिया। कहा अगर तुम्हारी माता मई शक्ति है तो बाह इस घोड़े को दुबारा जिन्दा कर देगी। उसने अकबर से 1 महीने की मोहलत मांगी। और कहा की आप इस घोड़ेको ऐसे ही रहने देना। और बाह मंदिर की और चल पड़ा।मंदिर मई उसने कठोर तपस्या की। ओर अंतिम मे उसने अपना सर माता के चरणों मैं अर्पण कर दिया। माता प्रकट हुई और उसने अपने भक्त का सर दुबारा जोड़ दिया। घोड़े का सर भी जुड़ गया और बह जिन्दा हो गया। यह देखकर अकबर भी माता के द्वार आया। उसने माता की नौ ज्वालाओं को बुझाने के लिए एक नहर बनाई। लेकिन फिर भी बाह ज्वाला नहीं बुझी। अकबर ने अपनी गलती मानी और उसने माता को सोने का छत्र चढ़ाया।लेकिन उसके छत्र को माता ने नहीं अपनाया और उस छत्र का रंग भी निकल गया। आज तक यह पता नहीं लगा है की वो छत्र कौन सी धातु से बना था। बिज्ञान भगबान को नहीं मानता यह आप सब जानते हैं। बिगानिको को शक था की यहाँ पर तेल या गैस का कोई भंडार है। इसलिए उन्होंने यहाँ पर कई शोध किये लेकिन कोई नतीजा निकला। अगर आप हिमाचल आएं तोह इस मंदिर के जरूर दर्शन करें

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