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क्या सच मे शबरी ने राम जी को झूठे बेर खिलाये थे, जाने पूरी कहानी

शबरी रामायण के उन पात्रों में से है जिनके विषय में आम जन में जो छवि से उससे बिल्कुल ही अलग छवि वाल्मीकि रामायण में है। आम जन में जो छवि है वह तुलसीदास के रामचरित मानस के आधार पर है। इसी के आधार पर लोग मानते हैं कि वह एक अनपढ़ और गँवार महिला थी जिसे इतना भी नहीं पता था कि जूठे फल भगवान को भोग नहीं लगाना चाहिए। लेकिन उसने इतने प्रेम से वह फल दिया कि राम जी ने जूठे बेर के फल को बड़े ही प्रेम से खाया। लेकिन वाल्मीकि रामायण इस छवि के अलग उनकी छवि प्रस्तुत करता है।
भक्ति परम्परा का प्राचीनतम प्रतीक ...
अब हम पुनः अपने उसी प्रश्न पर आते हैं। क्या शबरी इतनी नादान थी जो भगवान को जूठे फलों का भोग लगाती। शबरी का लगभग सारा जीवन मतंग जैसे ऋषियों के सानिध्य गुजरा। उनके आश्रम में हमेशा ऋषि-मुनि आते रहते थे और धर्म चर्चा होती रहती थी। यह क्रम मतंग ऋषि के नहीं रहने पर भी जारी रहा।
भगवत चर्चा सुन कर और आश्रम के क्रिया कलापों को देख कर इतने दिनों में शबरी को धर्म और भगवान के विषय में इतना ज्ञान हो गया था जितना किसी अन्य वनवासी मुनि को होता है। तभी तो वाल्मीकि जी लिखते हैं कि उसने “विधिवत” राम-लक्ष्मण की पूजा की। इसमें कहीं भी जूठे बैर खिलाने का वर्णन नहीं है। भगवान से उसके वार्तालाप में कहीं भी नहीं लगता है कि वह ऐसी निपट गँवार थी।
रामायण के अन्य पात्रों की तरह शबरी का सबसे प्राचीन वर्णन वाल्मीकि रामायण में ही है। बाद में संभवतः भक्ति को अधिक महत्व देने के लिए और शबरी की कथा को थोड़ा और भावप्रवण बनाने के लिए उसमें ऐसी बातें जोड़ी जाने लगी। शबरी से संबंधित कई किस्से-कहानियाँ बाद के कई ग्रंथों में लिखे गए। जैसे लक्ष्मण द्वारा जूठे बेर नहीं खाना और उसी बेर से संजीवनी बूटी बनना जिससे बाद में उनकी जान बचाई जा सकी

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