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मृत्यु सय्या पर लेटे हुए दिया एक ऐसा बरदान जिसे खुल गए पांडवो के जीत के द्वार


महाभारत के युध्द को जब चलते चलते  18 बां दिन आयायुद्ध भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण नक्षत्र में जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके। इस दौरान कौरवों को पराजय का भय सताने लगा था। गुस्से में दुर्योधन ने अपनी इस दुर्दशा के लिए महामहीम भीष्म को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें भला बुरा बोलने लगा ।दुर्योधन ने भीष्म पर आरोप लगाया कि उन्होंने परोक्ष रूप से पांडवों की सहायता की है और कौरवों के साथ खड़े होने का उन्होंने छल किया है।




यह सुनकर भीष्म दुखी हो गये । अपनी धर्मनिष्ठता को साबित करने के लिए भीष्म ने दुर्योधन को 5 ऐसे स्वर्ण निर्मित तीर दिए, जिनका संधान करने पर पांडव आसानी से हार सकते थे । दुर्योधन को भीष्म की बातों पर विश्वास नहीं था और उन बाणों को ले जाकर दुर्योधन इन्हें संधान करने की योजना बनाने लगा । जब भगवान कृष्ण को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने अर्जुन को दुर्योधन से उन सभी बाणों को मांग लेने को कहा ।




चूंकि एक बार अर्जुन ने गन्धर्वों से दुर्योधन के प्राणों की रक्षा की थी, उस समय दुर्योधन ने अर्जुन को कुछ भी मांगने का वचन दिया था ।दुर्योधन ने अपने क्षत्रिय धर्म का पालन किया और उन सभी स्वर्ण निर्मित बाणों को अर्जुन को दान में दे दिया ।

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