आज है धनतेरस के साथ-साथ छोटी दिवाली, पूजा के समय इस मन्त्र का अवश्य करें जाप
आज 13 नवंबर है और आज छोटी दिवाली के साथ-साथ धनतेरस भी है। धनतेरस के दिन ही देवतों के वैद्य धन्वंतरि समुद्र मंथन से हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं। धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर, औषधि के देवता धन्वंतरि तथा सुख, समृद्धि तथा वैभव की देवी महालक्ष्मी की पूजा विधि विधान से की जाती है।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त- 13 नवंबर, शुक्रवार - शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक।
वृषभ काल- शाम 5 बजकर 32 मिनट से शाम 7 बजकर 28 मिनट तक।
प्रदोष काल- शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 8 बजकर 7 मिनट तक।
लक्ष्मी की पूजा- सूर्य अस्त होने के बाद करीब दो से ढ़ाई घंटों का समय प्रदोष काल माना जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी की पूजा इसी समय में करनी चाहिए। अनुष्ठानों को शुरू करने से पहले नए कपड़े के टुकड़े के बीच में मुट्ठी भर अनाज रखा जाता है।
कपड़े को किसी चौकी या पाटे पर बिछाना चाहिए। आधा कलश पानी से भरें, जिसमें गंगाजल मिला लें। इसके साथ ही सुपारी, फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने और अनाज भी इस पर रखें। कुछ लोग कलश में आम के पत्ते भी रखते हैं। इसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें-
लक्ष्मी मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
धनतेरस पूजा विधि
एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। अब इस चौकी पर गंगाजल के छींटें मारकर इसे पवित्र करें। फिर इस चौकी पर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
देसी घी का दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाएं। अब प्रतिमा पर लाल फूलों का हार अर्पित करें। संभव हो तो कमल का फूल भी चढ़ाएं। साथ ही प्रतिमा पर कुमकुम का तिलक भी लगाएं।
धनतेरस के दिन जिस भी बर्तन, धातु या ज्वेलरी आदि की खरीदारी की है उसे चौकी पर रखें। हाथ जोड़कर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर का ध्यान करें।
अब लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें।
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